आप सबों को लघु उद्योग दिवस की बधाई!
आज लघु उद्योग दिवस (Small Scale Industry Day) मनाया जा रहा है। इसी से स्पष्ट है कि लघु उद्योग हमारे देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। औद्योगिक अर्थव्यवस्था के विकास का श्रेय काफ़ी हद तक लघु उद्योग को दिया जाता रहा है।
लघु उद्योग किसे कहते हैं?
लघु उद्योग (Small Scale Industry – SSI) ऐसी इकाइयां हैं, जिनमें कम निवेश (investment) और श्रम शक्ति (labour force) की सहायता से छोटे पैमाने पर उत्पादन किया जात है। जाहिर है, वस्तुओं एवं सेवाओं का कम मात्र में उत्पादन होता है, ऐसी बिज़नेस की इकाईयों को लघु उद्योग कहा जाता है।
किसी भी उद्योग को उसके काम के आधार पर निर्माण (manufacturing) या सर्विस सेक्टर में बांटा जाता है। मैन्युफैक्चरी सेक्टर में कोई वस्तु बेची जाती है, जैसे, कार, कम्पयूटर, फोन, इत्यादि, जबकि सर्विस सेक्टर में कम्पनी का उत्पादक (product) एक सेवा होती है, जैसे, बीमा (insurance), कंसल्टिंग (consulting), एकांउटिंग (accounting), आदि।
प्लांट (plant) और मशीनरी (manufacturing) में लगाई गई पूंजी के आधार पर लघु उद्योग तीन तरह के होते हैं:
- सूक्ष्म उद्योग (Micro Industry) – मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 25 लाख रु- से अधिक नहीं और सर्विस सेक्टर में 10 लाख रु- तक का निवेश होता है।
- लघु उद्योग (SSI) – मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 25 लाख रु- से 5 करोड़ तक एवं सर्विस सेक्टर में 10 लाख रु- से 2 करोड़ तक के निवेश का प्रबंध होता है।
- मध्यम उद्योग (Medium Industry) – मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 5 करोड़ रु- से 10 करोड़ रु- तक तथा सर्विस सेक्टर में 2 करोड रु-़ से 5 करोड़ रु- तक की पूंजी लगाने की गुंजाइश रहती है।
लघु उद्योग की विशेषताएं:
- श्रम प्रधान (labour intensive)
- लचीलापन (flexibility)
- एक व्यक्ति का शो (one person show)
- स्वदेशी कच्चे माल का प्रयोग (use of indigenous raw materials)
- शैक्षणिक स्तर (educational level) – कम शैक्षणिक स्तर पर भी अपना उद्योग शुरू किया जा सकता है।
लघु उद्योग के उदाहरण
एक बार ही निवेश कर लघु उद्योग शुरु किया जा सकता है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में नैपकिन, टिशू, चॉकलेट, टूथ पिक, वॉटर बोतल, छोटे खिलौने, पेपर, पेन, हर्बल सामान जैसे साबुन, तेल आदि बनाना, मोमबती, अगरबती, डिस्पोजेबल कप-प्लेट, टोकरी बनाना, कुकी एवं बिस्कुट बनाना, चमड़े का बेल्ट, जूता, चप्पल, पारम्परिक औषधियां, झाड़ू, इत्यादि के लघु उद्योग लगाए जा सकते हैं।
इसके अलावा, सर्विस सेक्टर में टेक्स रिर्टन, बैलेंस शीट बनाना, बुक-किपिंग, कुरियर सर्विस, केटेरिंग सर्विस, क्लीनिंग सर्विस, ट्रैवलिंग एजेंसी, मोबाइल रिचार्ज, वैडिंग कंसल्टेंट, क्लॉड किचन (cloud kitchen, swiggy, zomato) इत्यादि, लघु उद्योग शुरू किया जा सकता है।
इंटरनेट की सुविधा के कारण नए लघु उद्योग की इकाइयां लग रही हैं।
जैसे यू-टयूब चैनल, ऑन-लाइन टियूटरिंग, वेब डिजाइन्गि, इत्यादि। इंटरनेट के माध्यम से मार्केटिंग की सुविधा भी बढ़ गई है।
सरकारी लोन और अन्य सहायता के कारण लघु उद्योग लगाने में सुविधा रहती है। महिलाएं भी काफ़ी संख्या में अपना लघु उद्योग चला रही हैं। लघु उद्योग का विस्तार और पहुंच व्यापक होती है। यह सही है कि लघु उद्योग के उत्पादक कम मात्र और छोटे प्लांट और मशीनरी के कारण प्रोडक्टस का स्टेन्डर्ड कम हो जाता है। एक व्यक्ति द्वारा नियंत्रित होने से कई बार श्रमिकों को भी दिक्कत होती है।
निष्कर्ष के तौर पर, हम कह सकते हैं कि जिन वस्तुओं का निर्माण और मार्केटिंग लघु उद्योग द्वारा हो सके, उन्हें बढ़ावा और सहयोग मिलना चाहिए।
हम, पटना डाइरीज़, में आशा करते हैं कि बिहार के लघु उद्योग में समृद्धि आए और राज्य में आवश्यक विकास होता रहे।
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